कर्त्तव्य के पथ पर क्या उचित है, क्या अनुचित यह निरंतर विचारते रहो। अंधपरंपरा को छोडकर तर्क और विवेक का आश्रय ग्रहण करो।

कर्त्तव्य के पथ पर क्या उचित है, क्या अनुचित यह निरंतर विचारते रहो। अंधपरंपरा को छोडकर तर्क और विवेक का आश्रय ग्रहण करो।

कर्त्तव्य के पथ पर क्या उचित है, क्या अनुचित यह निरंतर विचारते रहो। अंधपरंपरा को छोडकर तर्क और विवेक का आश्रय ग्रहण करो।
देवता श्रम करने वाले के अतिरिक्त किसी और से मित्रता नहीं करते हैं। जो श्रम नहीं करता, देवता उसके साथ मैत्री नहीं करते।

देवता श्रम करने वाले के अतिरिक्त किसी और से मित्रता नहीं करते हैं। जो श्रम नहीं करता, देवता उसके साथ मैत्री नहीं करते।

देवता श्रम करने वाले के अतिरिक्त किसी और से मित्रता नहीं करते हैं। जो श्रम नहीं करता, देवता उसके साथ मैत्री नहीं करते।