ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः । भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाग्ँरसस्तनूभिः । व्यशेम देवहितं यदायुः । ।

ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः ।
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाग्ँरसस्तनूभिः ।
व्यशेम देवहितं यदायुः । ।


अर्थ — ॐ, देवताओं! हम अपने कर्णों (कानों) से शुभ वचन सुनें, हम अपनी आँखों से शुभ ही देखें। हम अपनी स्थिर इंद्रियों और शरीर से आपकी स्तुति करते हुए, अर्थात अपने रूप तन मन और वचनों द्वारा प्रार्थना करते हुए, हमारा देवों द्वारा दी गयी आयु (जीवन) देवों के लिए व्यतीत हो।

Meaning - O Devas! May we hear auspicious words through our ears. May we see auspicious things with our eyes. May we, with steady limbs and healthy bodies, praise and worship the Devas through our entire being. May our life be devoted to the service of the Devas.

ॐ वाङ् मे मनसि प्रतिष्ठिता । मनो मे वाचि प्रतिष्ठितम् । आविराविर्म एधि । वेदस्य म आणीस्थः । श्रुतं मे मा प्रहासीः । अनेनाधीतेनाहोरात्रान्सन्दधामि ।

ॐ वाङ् मे मनसि प्रतिष्ठिता । मनो मे वाचि प्रतिष्ठितम् ।
आविराविर्म एधि । वेदस्य म आणीस्थः ।
श्रुतं मे मा प्रहासीः । अनेनाधीतेनाहोरात्रान्सन्दधामि ।


अर्थ — मेरी वाणी में मन प्रतिष्ठित हो, और मेरे मन में वाणी प्रतिष्ठित हो अर्थात मन और वाणी स्थिर हो जाये।मुझमें स्वयं प्रकट आत्मा का ज्ञान बढ़े और मैं वेदों को जानूं। वेद के ज्ञान अर्जन के लिए मेरे स्थिर मन और वाणी आधार बनें। जो मेरे द्वारा सुना गया है वह एक रूप नहीं है, लेकिन मैं इस वेद का अध्ययन, दिन और रात्रि करके इसे संयोजित करता हूँ।

Meaning - In my speech, let my thoughts be established, and in my thoughts, let my speech be established. In other words, may my speech and thoughts be in harmony. May my understanding of the self, which is self-evident, increase, and may I gain knowledge of the Vedas. May the knowledge from the Vedas become the foundation for my stable mind and speech. What I have heard is not just a mere sound, but by studying the Vedas day and night, I integrate and internalize their teachings.

पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती । यज्ञं वष्टु धियावसुः ॥

पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती ।
यज्ञं वष्टु धियावसुः ॥


अर्थ — हे देवी सरस्वती, आप हमें पावक (यज्ञ की आग) की तरह शुद्ध और शक्तिशाली ज्ञान प्रदान करें। आप हमें वाजेभिः (यज्ञोपवीत) के साथ युक्त और विजयी बनाएं। आपकी कृपा से हमारी बुद्धि को वष्टु (यज्ञ की सामग्री) में समर्पित करें ताकि हमारे ज्ञान और कर्म से हमारा जीवन रुपी यज्ञ सफल बने।

Meaning - O Goddess Saraswati, please bless us with pure and powerful knowledge, just like the sacred fire of a yagya (ritualistic offering). Empower us with wisdom that illuminates our minds and hearts. Guide us towards triumph. May your grace infuse our intellect into the offerings of knowledge, so that our life’s journey, like a yagya, becomes successful through knowledge and actions.

महो अर्णः सरस्वती प्र चेतयति केतुना । धियो विश्वा वि राजति ॥

महो अर्णः सरस्वती प्र चेतयति केतुना ।
धियो विश्वा वि राजति ॥


अर्थ — हे देवी सरस्वती, आप ज्ञान का महासागर हैं, अपने ज्ञान की ज्योति द्वारा पूरे संसार को अपार बुद्धि और ज्ञान से प्रकाशित करती हैं।

Meaning - O Goddess Saraswati, you are the vast ocean of knowledge, and through the light of your wisdom, you illuminate the entire world with boundless intellect and knowledge.

आपः यस्या हृदयं परमे व्योमन्त्सत्येनावृतममृतं पृथिव्याः!!

आपः यस्या हृदयं परमे व्योमन्त्सत्येनावृतममृतं पृथिव्याः!!


अर्थ — धरती माँ, जिनका हृदय उच्चतम व्योम (आध्यात्मिक आकाश) है, जिनका शरीर सत्य और अमृत से आवृत है, वह पृथ्वी देवी हैं।

Meaning - Mother Earth, whose heart is the highest spiritual sky, whose body is adorned with truth and immortality, is the goddess Earth.