अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् । हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥

अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् ।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥


अर्थ — श्री मधुराधिपति (श्री कृष्ण) का सभी कुछ मधुर है। उनके अधर (होंठ) मधुर है, मुख मधुर है, नेत्र मधुर है, हास्य (मुस्कान) मधुर है, हृदय मधुर है और चाल (गति) भी मधुर है॥

Meaning - Lord Madhurādhipati (Lord Krishna) is entirely sweet. His lips are sweet, His mouth is sweet, His eyes are sweet, His laughter (smile) is sweet, His heart is sweet, and even His gait (movement) is sweet.

करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम् । वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥

करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम् ।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥


अर्थ — मैं, कमल रूपी हाथ से पकड़कर, कमल रुपी पैरों के अंगूठे को, कमल रुपी मुख में डालते हुए अर्थात चूसते हुए , वट वृक्ष के पत्तों में शयन करने वाले बालक मुकुंद (भगवान् कृष्ण) को मन से स्मरण करता हूँ।

Meaning - I mentally contemplate upon the boy Mukunda (Lord Krishna), who is holding his lotus-like feet, with his lotus-like hands and gently kiss the lotus-like mouth with his lotus-like toe, all the while He rests on the leaves of the banyan tree.

एकोनविंशे विंशतिमे वृष्णिषु प्राप्य जन्मनी । रामकृष्णाविति भुवो भगवानहरद्भरम् ॥

एकोनविंशे विंशतिमे वृष्णिषु प्राप्य जन्मनी ।
रामकृष्णाविति भुवो भगवानहरद्भरम् ॥


अर्थ — वृष्णिवंशी कुल में उन्नीसवें तथा बीसवें अवतारों में भगवान कृष्ण के रूप में अवतरित हुए और इस तरह उन्होंने संसार के भार को दूर किया।

Meaning - In the lineage of the Vrishni dynasty, Bhagavan (God) appeared as the nineteenth and twentieth incarnations, manifesting in the form of Lord Krishna. Through these incarnations, he alleviated the burdens of the world.

कृष्णाय वासुदेवाय देवकी नन्दनाय च । नन्दगोप कुमाराय गोविन्दाय नमो नमः ॥

कृष्णाय वासुदेवाय देवकी नन्दनाय च ।
नन्दगोप कुमाराय गोविन्दाय नमो नमः ॥


अर्थ — वासुदेव के पुत्र श्रीकृष्ण को, और देवकी नंदन है अर्थात देवकी के पुत्र को, ग्वाल नंद के पुत्र को, जो स्वयं भगवान श्री गोविंद हैं, मैं नमस्कार करता हूँ।

Meaning - I offer my repeated salutations to Lord Krishna, the son of Vasudev and Devaki, the divine child of Nanda, the cowherd’s son, who is none other than the supreme deity Govinda.

सत्यमेव जयते नानृतम् सत्येन पन्था विततो देवयानः । येनाक्रमत् मनुष्यो ह्यात्मकामो यत्र तत् सत्यस्य परं निधानं ॥

सत्यमेव जयते नानृतम् सत्येन पन्था विततो देवयानः ।
येनाक्रमत् मनुष्यो ह्यात्मकामो यत्र तत् सत्यस्य परं निधानं ॥


अर्थ — सत्य ही हमेशा विजयी होता है, असत्य कभी नहीं। देव मार्ग जिससे परमात्मा की ओर जाते हैं सत्य ही है। जिस मार्ग से मनुष्य आत्म-सुख प्राप्त करता है, वह मार्ग ही सत्य के परम धाम की ओर जाता है।

Meaning - Truth alone triumphs; not falsehood. Through truth, the divine path is spread out by which the sages whose desires have been completely fulfilled, travel to where that supreme treasure of Truth resides.