अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।

अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।


अर्थ – जिनका हृदय बड़ा होता है, उनके लिए पूरी धरती ही परिवार होती है और जिनका हृदय छोटा है, उनकी सोच वह यह अपना है, वह पराया है की होती है।

स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः। स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान्सर्वत्र पूज्यते।।

स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान्सर्वत्र पूज्यते।।


अर्थ – एक मुर्ख की पूजा उसके घर में होती है, एक मुखिया की पूजा उसके गाँव में होती है, राजा की पूजा उसके राज्य में होती है और एक विद्वान की पूजा सभी जगह पर होती है।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम्, भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्!

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम्,
भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्!


अर्थ – यानि उस प्राण स्वरूप, दुःख नाशक, सुख स्वरुप श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देव स्वरुप परमात्मा को हम अन्तरात्मा में धारण करें। परमात्मा हमारी बुद्धि को सत्मार्ग पर प्रेरित करें।

अविश्रामं वहेत् भारं शीतोष्णं च न विन्दति । ससन्तोष स्तथा नित्यं त्रीणि शिक्षेत गर्दभात् ॥

अविश्रामं वहेत् भारं शीतोष्णं च न विन्दति ।
ससन्तोष स्तथा नित्यं त्रीणि शिक्षेत गर्दभात् ॥


अर्थ - विश्राम लिए बिना भार वहन करना, ताप-ठंड ना देखना, सदा संतोष रखना यह तीन चीजें हमें गधे से सीखनी चाहिए।