Posted inShlok
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षनति। शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः।।
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षनति।
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः।।
अर्थ – जो पुरूष न कभी हर्षित होता है, न कभी द्वेष करता है, न कभी शोक करता है, न कामना करता हैं और जो शुभ और अशुभ सभी कर्मों का त्यागी हो, वह भक्तियुक्त मनुष्य मेरे को प्रिय है।