यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षनति। शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः।।

यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षनति।
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः।।


अर्थ – जो पुरूष न कभी हर्षित होता है, न कभी द्वेष करता है, न कभी शोक करता है, न कामना करता हैं और जो शुभ और अशुभ सभी कर्मों का त्यागी हो, वह भक्तियुक्त मनुष्य मेरे को प्रिय है।

ॐ असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय।।

ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मामृतं गमय।।


अर्थ – हे प्रभु, हम सभी को असत्य से दूर सत्य की ओर ले चलो घोर अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।

उद्यमः साहसं धैर्यं बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः। षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र दैवं सहायकृत्।।

उद्यमः साहसं धैर्यं बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः।
षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र दैवं सहायकृत्।।


अर्थ – जो जोखिम लेता हो (उधम), साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम जैसे ये 6 गुण जिस व्यक्ति के पास होते हैं, उसकी मदद भगवान भी करता है।

अष्टादस पुराणेषु व्यासस्य वचनं द्वयम्। परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्।।

अष्टादस पुराणेषु व्यासस्य वचनं द्वयम्।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्।।


अर्थ – अठारह पुराणों में व्यास के दो वचन ही है। पहला परोपकार ही पुण्य है और दूसरा औरों को दुःख पहुंचाना पाप है।

सत्य -सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्मः सदाश्रितः। सत्यमूलनि सर्वाणि सत्यान्नास्ति परं पदम्।।

सत्य -सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्मः सदाश्रितः।
सत्यमूलनि सर्वाणि सत्यान्नास्ति परं पदम्।।


अर्थ – उस संसार में सत्य ही ईश्वर है धर्म भी सत्य के ही आश्रित है, सत्य ही सभी भाव-विभव का मूल है, सत्य से बढ़कर और कुछ भी नहीं है।