आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः। नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।।

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।।


अर्थ — मनुष्यों के लिए आलस्य उनके शरीर में बसा महान शत्रु है। उद्यमी व्यक्ति के लिए परिश्रम जैसा कोई मित्र नहीं होता, क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता।
काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च। अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।।

काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च। अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।।

काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च।
अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।।


अर्थ — विद्या के लिए प्रतिबद्ध विद्यार्थी (छात्र) मे यह पांच लक्षण होने चाहिए – कौवे की तरह जानने की चेष्टा, बगुले की तरह ध्यान, कुत्ते की तरह सोना / निंद्रा, अल्पाहारी अर्थात कम आहार वाला और गृह-त्यागी होना चाहिए।
पृथ्वीयां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम्। मूढैः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते।।

पृथ्वीयां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम्। मूढैः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते।।

पृथ्वीयां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम्।
मूढैः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते।।


अर्थ — पृथ्वी पर तीन रत्न होते हैं – जल, अन्न और सुभाषित (मधुर वचन)। लेकिन मूर्खों के द्वारा पत्थर के टुकड़ों अर्थात हीरे-जवाहरात को ही रत्न का नाम दिया जाता है।
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं।।

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं।।

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं।।


अर्थ — जो व्यक्ति सुशील और विनम्र होते हैं, बड़ों का अभिवादन व सम्मान करने वाले होते हैं तथा निरंतर वृद्धों की सेवा करने वाले होते हैं। उनकी आयु (उम्र), विद्या (शिक्षा), यश (कीर्ति) और बल (शारीरिक ताकत) इन चारों में वृद्धि होती है।
कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती। करमूले तु गोविन्दं प्रभाते करदर्शनम्।।

कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती। करमूले तु गोविन्दं प्रभाते करदर्शनम्।।

कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
करमूले तु गोविन्दं प्रभाते करदर्शनम्।।


अर्थ — लक्ष्मी माता हमारे हाथ के अंगुलियों के अग्रभाग में वास करती है, सरस्वती माता हमारे हाथों के बीच में वास करती है, भगवान गोविन्द अर्थ विष्णु हमारे हाथों की जड़ में वास करते हैं, सुबह के समय उनका दर्शन करना चाहिए।