अष्टौ गुणा पुरुषं दीपयंति प्रज्ञा सुशीलत्वदमौ श्रुतं च। पराक्रमश्चबहुभाषिता च दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च॥

अष्टौ गुणा पुरुषं दीपयंति प्रज्ञा सुशीलत्वदमौ श्रुतं च।
पराक्रमश्चबहुभाषिता च दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च॥


अर्थ — आठ गुण पुरुष का आभूषण होते हैं: ज्ञान, सुशीलता, आत्म-संयम, शास्त्रविद्या, वीरता, मितभाषिता (कम बोलना), अपनी क्षमता के अनुसार दान, और कृतज्ञता॥

आचार्यात् पादमादत्ते पादं शिष्यः स्वमेधया। कालेन पादमादत्ते पादं स ब्रह्मचारिभिः।।

आचार्यात् पादमादत्ते पादं शिष्यः स्वमेधया।
कालेन पादमादत्ते पादं स ब्रह्मचारिभिः।।


अर्थ — शिष्य अपने गुरु से पाव हिस्सा (1/4) ज्ञान प्राप्त करता हैं, पाव हिस्सा (1/4) अपनी बुद्धि से प्राप्त करता हैं, पाव हिस्सा (1/4) अपने सहपाठियों से प्राप्त करता हैं और पाव हिस्सा (1/4) समय के साथ स्वयं के अनुभव से प्राप्त करता रहता हैं।

वाणी रसवती यस्य, यस्य श्रमवती क्रिया। लक्ष्मी: दानवती यस्य, सफलं तस्य जीवितं।।

वाणी रसवती यस्य, यस्य श्रमवती क्रिया।
लक्ष्मी: दानवती यस्य, सफलं तस्य जीवितं।।


अर्थ — जिस मनुष्य की वाणी मधुर होती है, जिसकी क्रियाएं परिश्रम पूर्वक होती हैं। जिसका धन दान करने में प्रयोग होता है, उसका जीवन सफल होता है।

भूमे: गरीयसी माता, स्वर्गात उच्चतर: पिता। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गात अपि गरीयसी।।

भूमे: गरीयसी माता, स्वर्गात उच्चतर: पिता।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गात अपि गरीयसी।।


अर्थ — माता भूमि से भी श्रेष्ठ होती है, पिता स्वर्ग से भी उच्च होते हैं। जननी (माता) और जन्मभूमि, दोनों ही स्वर्ग से भी अधिक महँ और महत्वपूर्ण होते हैं।

आदि देव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर:। दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते ।।

आदि देव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर:।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते ।।


अर्थ — सबसे पहले आदिदेव सूर्य को मेरा नमस्कार, प्रकाश देने वाले हे भास्कर (दिनकर, सूर्यदेव) आप प्रसन्न हो। दिवाकर को मेरा नमस्कार, प्रभाकर (सूर्यदेव) को मेरा नमन है।