दुर्जन: परिहर्तव्यो विद्यालंकृतो ऽसन्। मणिना भूषितो सर्प: किमसौ न भयंकर:।।

दुर्जन: परिहर्तव्यो विद्यालंकृतो ऽसन्।
मणिना भूषितो सर्प: किमसौ न भयंकर:।।


अर्थ —  दुर्जन (दुष्ट व्यक्ति) यदि विद्या से सुशोभित भी हो अर्थात वह विद्यावान भी हो, फिर भी उसका त्याग कर देना चाहिए। जैसे मणि से भूषित सर्प भी कितना भयंकर हो सकता है?

 

अश्वस्य भूषणं वेगो मत्तं स्याद् गजभूषणं। चातुर्यम् भूषणं नार्या उद्योगो नरभूषणं।।

अश्वस्य भूषणं वेगो मत्तं स्याद् गजभूषणं।
चातुर्यम् भूषणं नार्या उद्योगो नरभूषणं।।


अर्थ — घोड़े के लिए उसकी तेजी (दौड़ने की गति) ही भूषण होती है, हाथी के लिए उसकी मस्ती (मदमस्त चाल) ही भूषण होती है। और नारी के लिए उसका चातुर्य (विभिन्न कार्यों मे दक्षता) ही भूषण होता है, पुरुष के लिए उसका उद्यमशील होना ही भूषण होता है।

विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन। स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते॥

विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते॥


अर्थ — एक राजा और विद्वान में कभी कोई तुलना नहीं की जा सकती है। क्योंकि एक राजा तो केवल अपने राज्य में सम्मान पाता है जबकि एक विद्वान कभी जगहों पर पूज्य होता है।

यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं। लोचनाभ्याम विहीनस्य, दर्पण: किं करिष्यति।।

यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं।
लोचनाभ्याम विहीनस्य, दर्पण: किं करिष्यति।।


अर्थ — जिस मनुष्य में स्वयं का विवेक, चेतना एवं बोध नहीं है, उसके लिए शास्त्र क्या कर सकता है। जैसे बिना आंखों के एक व्यक्ति, अर्थात् अंधे मनुष्य के लिए दर्पण क्या कर सकता है।

ते पुत्रा ये पितुभक्ता: स: पिता यस्तु पोषक:। तन्मित्र यत्र विश्वास: सा भार्या या निर्वती ।।

ते पुत्रा ये पितुभक्ता: स: पिता यस्तु पोषक:।
तन्मित्र यत्र विश्वास: सा भार्या या निर्वती ।।


अर्थ — पुत्र वही है जो पितृभक्ति करने वाला हो, पिता वही है जो पुत्रों का पालन-पोषण करने वाला हो। मित्र वही है जिन पर आप विश्वास कर सकते हों और भार्या (पत्नी) वही है जिससे सुख प्राप्त हो।