सुखस्य मूलं धर्म:। धर्मस्य मूलं अर्थ:। अर्थस्य मूलं राजस्य। राजस्य मूलं इन्द्रियजय:।।
सुखस्य मूलं धर्म:। धर्मस्य मूलं अर्थ:।
अर्थस्य मूलं राजस्य। राजस्य मूलं इन्द्रियजय:।।
अर्थ — सुख का मूल (जड़) धर्म है। धर्म का मूल (जड़) आर्थिक उपलब्धियों में है। अर्थ का मूल (जड़) राज्य में है। और राज्य का मूल (जड़) इन्द्रियों के वशीभूत होने में है अर्थात इन्द्रियों पर विजय में है।