आदि देव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर:। दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते ।।

आदि देव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर:।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते ।।


अर्थ — सबसे पहले आदिदेव सूर्य को मेरा नमस्कार, प्रकाश देने वाले हे भास्कर (दिनकर, सूर्यदेव) आप प्रसन्न हो। दिवाकर को मेरा नमस्कार, प्रभाकर (सूर्यदेव) को मेरा नमन है।

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः। नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।।

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।।


अर्थ — मनुष्यों के लिए आलस्य उनके शरीर में बसा महान शत्रु है। उद्यमी व्यक्ति के लिए परिश्रम जैसा कोई मित्र नहीं होता, क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता।
काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च। अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।।

काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च। अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।।

काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च।
अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।।


अर्थ — विद्या के लिए प्रतिबद्ध विद्यार्थी (छात्र) मे यह पांच लक्षण होने चाहिए – कौवे की तरह जानने की चेष्टा, बगुले की तरह ध्यान, कुत्ते की तरह सोना / निंद्रा, अल्पाहारी अर्थात कम आहार वाला और गृह-त्यागी होना चाहिए।
पृथ्वीयां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम्। मूढैः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते।।

पृथ्वीयां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम्। मूढैः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते।।

पृथ्वीयां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम्।
मूढैः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते।।


अर्थ — पृथ्वी पर तीन रत्न होते हैं – जल, अन्न और सुभाषित (मधुर वचन)। लेकिन मूर्खों के द्वारा पत्थर के टुकड़ों अर्थात हीरे-जवाहरात को ही रत्न का नाम दिया जाता है।
सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यं प्रियम्। प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्म: सनातन:।।

सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यं प्रियम्। प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्म: सनातन:।।

सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यं प्रियम्।
प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्म: सनातन:।।


अर्थ — सत्य बोलें, प्रिय बातें बोलें, पर अप्रिय सत्य नहीं बोलें। प्रिय असत्य भी न बोलें, यही सनातन धर्म है।