आकिञ्चन्ये न मोक्षोऽस्ति किञ्चन्ये नास्ति बन्धनम्।
किञ्चन्ये चेतरे चैव जन्तुर्ज्ञानेन मुच्यते॥
अर्थ — दरिद्रता में मोक्ष नहीं, और संपन्नता में कोई बन्धन नहीं। किन्तु दरिद्रता हो या संपन्नता, मनुष्य ज्ञान से ही मुक्ति पाता है।