न कश्चित कस्यचित मित्रं न कश्चित कस्यचित रिपु:। व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिप्वस्तथा।।

न कश्चित कस्यचित मित्रं न कश्चित कस्यचित रिपु:।
व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिप्वस्तथा।।

अर्थ – न कोई किसी का मित्र होता है। न कोई किसी का शत्रु। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं।

Spread the vedic information

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *